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प्रभु राम मुलख दयाल दरबार 

गुरु महिमा गावत सदा मन रखियो अतिमोद

सो भव फिर आवत नहीं बैठ गुरु की गोद

भाव : गुरु की महिमा का सदैव बखान करने वाला प्राणी पुनः इस भवबंधन रूपी संसार से मुक्त होकर बैकुंठ धाम को प्राप्त हो जाता है।

जब से सृष्टि का सृजन हुआ है, तब से योग विद्या का प्रचलन रहा है परंतु इस कलिकाल में योग विद्या का पुनरुद्धार करने का श्रेय केवल अष्ट योग के स्वामी महाप्रभु श्री रामलाल जी को ही जाता है। योग योगेश्वर महाप्रभु जी ने अपने पूरे जीवन काल में, बल्कि बाल्यकाल से ही अनेकों दिव्य अलौकिक घटनाओं के माध्यम से अपने शरणागत भक्त समाज के कल्याण हेतु सभी को लाभान्वित किया। यह जिक्र करना भी अनुचित नहीं होगा कि आज भी उनके आशीर्वाद को पाने के लिए और उनकी प्रेरणा से निर्मित अनेकों आश्रमों में दुखी जीव इसका आनंद व लाभ पा रहे हैं। कोई भी योग का जिज्ञासु और विस्तृत जानकारी के लिए योग दिव्य मंदिर में उपलब्ध पुस्तकों का पठन कर सकता है या मंदिर में आचार्यों से संपर्क कर सकता है।

योग योगेश्वर श्री महाप्रभु श्री रामलाल जी महाराज कलिकाल के भौतिकवाद में फसे जीवों को तीन ऋण, तीन ताप व तीन दोषों से मुक्त करने में सदैव सक्षम थे। लुप्त योग विद्या को पुनर्जन्म देने के लिए मर्यादावश अपने सद्गुरुदेव की खोज में अपने महान तप व त्याग से हिमालय में जाकर अपने गुरुदेव के शरणागत होकर अष्टांग योग के स्वामित्व को प्राप्त हुए। यह प्रमाणित है की अपने सद्गुरु की आज्ञा प्राप्त करके आपके द्वारा बस्तियों एवं शहरों में अनेकानेक साध्य असाध्य रोगी लाभान्वित हुए एवं शरणागत शिष्यों को ध्यान समाधि का दान देकर योगाचार्य बनाया। फलस्वरूप योगाभ्यास केंद्रों की स्थापना करके अनेकों परिवारों को शारीरिक व आत्मिक सुख शांति का आनंदमय जीवनदान दिया।

 

श्रद्धा भक्ति से योग साधना एवं ध्यान करने वाले अपने भक्तों पर आज भी प्रभु जी अपनी कृपादृष्टि रखते हैं जैसे कि भक्त कबीर जी ने फरमाया है :

गुरु को कीजिए दंडवत कोटी - कोटी प्रणाम,

कीट ना जाने भृंग को गुरु करते आप समान

भाव : गुरु के चरणों में लेट कर बार बार दंडवत प्रणाम करने से जैसे कीड़ा भी नकल करके बिना जाने भृंग का रूप ले लेता है, उसी प्रकार सद्गुरु भी अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से शिष्य को अपना रूप बना लेता है।

यह मन ताको दीजिए साँचा सेवक होय,

सिर ऊपर आरा सहै तउ ना दूजा होय ॥​

भाव : सद्गुरु अपना सत्य ज्ञान एवं आशीर्वाद का अमृत भी उसी को प्रदान करते हैं जो सच्चा सेवक है और किसी भी सांसारिक कष्ट को प्रसन्नता पूर्वक सहन करता है। अर्थात : निष्ठापूर्ण सेवा करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।

ऊपर के प्रसंग का साक्षात प्रमाण रूप श्री महाप्रभु जी ने असीम श्रद्धा और सेवा से प्रसन्न होकर अपने आशीर्वाद व संकल्प से अपने परम प्रिय शिष्य श्री मुलखराज जी महाराज को दिया और योग शक्ति का संचार किया।

योग शक्ति का संचार व सद्गुरुदेव के आशीर्वाद से स्वामी श्री मुलखराज जी महाराज अष्टयोग की पूरण शक्ति को प्राप्त हुए।

योग समाधि की पूरण स्थिति जिसे तुर्या अतितुर्या अवस्था भी कहा जाता है (इसमे योगी बंद नेत्रों से ध्यान में रहते हुए भी अपने सभी सांसारिक कार्य सकुशल रूप से करता रहता है), स्वामी श्री मुलखराज जी महाराज 12 वर्ष तक इस अवस्था में रहे, जिस दौरान अनेकों अलौकिक घटनाएँ घटित हुई :

  • अपने सद्गुरुदेव के स्पर्श से ही चारों वेदों का ज्ञान, अपने इष्ट देव के चारों पहर दर्शन, दया भाव से ही भक्तों को ध्यान का दान व अन्य कल्याण रूपी कार्य नियमित रूप से होते रहते थे।

  • संसार में श्री मुलखराज जी महाराज को महादानी कह कर भी संबोधित किया गया क्योंकि बहुत सी ऐसी दिव्य अलौकिक कल्याणकारी घटनाएँ ऐसे घटित हुई जिसका रूप आसानी से समझ नहीं आ सकता।

 

गुरु बिन ज्ञान ना उपजै, गुरु बिन मिले ना मोक्ष,

गुरु बिन लखै ना सत्य को, गुरु बिन मिटै ना दोष।।

भाव : बिना गुरु के ज्ञान का मिलन असंभव है, मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बंधनों से गुरु की कृपा बिना नहीं छूटता। बिना गुरु के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नहीं मिलता। अंत: गुरु की शरण की सच्ची राह दिखा सकती है।

 

अपने गुरु के सान्निध्य में रहकर उनके आशीर्वाद द्वारा योगेश्वर श्री मुलखराज जी महाराज ने शरणागत भक्त समाज एवं हर जन साधारण का वर्षों तक शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कल्याण किया।

जैसे प्यास कुएं के पास जाता है प्यास मिटाने के लिए इसी तरह कोई भी कृपारत जिज्ञासा से योग विषयों पर इन महान योगियों की संसार पर करुणा कृपा की जानकारी का आनंद एवं लाभ योग आश्रमों में जाकर आचार्यों से संपर्क करके ले सकता है।

 

योगेश्वर श्री मुलखराज जी महाराज ने फरमाया :

चींटी से लेकर ब्रह्मा तक, रंक से लेकर राजा तक, ज्ञानी एवं अज्ञानी हर कोई अधिकाधिक सुख शांति के लिए प्रयत्नशील होते हैं। किन्तु शारीरिक भोगों को भोगने के लिए या उन भोगों के द्वारा सुख शांति के लिए मन के अधीन प्राणीमात्र जितना अधिक यत्न करता है, अगर उतना यत्न पूरण योगी श्री सद्गुरुदेव जी की शरण होकर उनके बताए हुए साधन मार्ग पर करे तो ईश्वरीय आनंद, बल, ऐश्वर्य को प्राप्त होते हुए शाश्वत सुख एवं पूरण शांति को पा सकता है – इसमे किंचितमात्र भी संशय नहीं होना चाहिए।

योगेश्वर श्री मुलखराज जी महाराज ने अपने जीवनकाल में :

  • अनेकों भक्तों के दुख अपने निज स्थूल शरीर पर भुगत कर, दुख दूर कर भक्तों का कल्याण किया।

  • योग शक्ति द्वारा अनेकों भक्तों को अपने इष्टदेव का साक्षात्कार करवाया।

  • रोगियों को योग साधना द्वारा निरोगी काया प्रदान की।

  • सांसारिक विघ्नों का निवारण मात्र आशीर्वाद द्वारा किया।

  • संतानहीन को योग साधनों द्वारा संतानवान बनाया।

  • भिन्न भिन्न प्रांतों में योग अभ्यास आश्रमों की स्थापना की, जिस से आने वाले साधक समाज का कल्याण हो। आत्मसवरूप की प्रकाष्ठा को प्राप्त करने के बाद, आपके चलाए हुए योग कल्पवृक्ष की साक्षात अनुभूति संसार भर को हो रही है और शरणागत भक्तों को हमेशा यह लाभ प्राप्त होता रहेगा।

 

गुरु शिष्य मिलन –

प्रारब्ध, संचित कर्म एवं संसार के कल्याण हेतु योग योगेश्वर परम श्रद्धेय, परम शक्तिमान, परम पूजनीय श्री सद्गुरुदेव स्वामी देवीदयाल महाराज जी का पावन जन्म अविभाजित पंजाब प्रांत में एक साधारण परंतु पूरण धार्मिक प्रवृति के परिवार में सन 1920 के फाल्गुन मास में हुआ।

धार्मिक परिवार में जन्म होने के साथ साथ बचपन में ही श्री महाराज जी का मन भगवत कीर्तन, नाम गुणानुवाद एवं भजन इत्यादि में बीता। उनका जीवन बचपन से ही पारदर्शी जल के समान निर्मल स्वच्छ एवं पवित्र रहा। उम्र के साथ साथ भक्ति का रंग भी चड़ता गया। अपनी जिज्ञासा एवं भक्ति के कारण मन हमेशा दिव्य अलौकिक आत्माओं से मिलने को सजग रहता था। बचपन से ही श्री महाराज जी हनुमान जी की भक्ति में लीन रहते थे और अपने एक मित्र द्वारा योगेश्वर स्वामी मुलखराज महाराज जी के बारे में सुनकर और उनकी योगमय लीला के बारे में जानकर उनसे मिलने की जिज्ञासा बढ़ती रही और निश्चित घड़ी पर गुरु शिष्य का आत्ममिलन छहरटा आश्रम जाने पर हुआ।

 

सद्गुरु स्वामी देवीदयाल जी महाराज ने अपनी अटूट भक्ति, श्रद्धा, लग्न एवं मेहनत से अपने गुरु की कृपा को प्राप्त किया और अष्ट योग का पूरण ज्ञान गुरु सेवा से प्राप्त किया। महाराज जी को यह पूरण एहसास भी हुआ की गुरु की प्रसन्नता, गुरु चरणों एवं गुरु घर की सेवा ही जीवन को सफल बनाती है।

स्वामी देवीदयाल जी महाराज जी की अटूट सेवा से प्रसन्न होकर मूलखेश्वर महाराज जी ने अपनी पूरण शक्तियों की भेंट सर्वश्रेष्ट योग्य पात्र समझ कर श्री महाराज जी को प्रदान की और फरमाया कि आने वाले समय में कलिकाल वश पड़े दीन दुखियों के दुखों को योग के सदमार्ग में लगा कर जीवन का कल्याण करने वाले होंगे। ऐसे योग आश्रमों का निर्माण भिन्न भिन्न प्रांतों में बहुत से स्थानों पर करेंगे और इन आश्रमों में श्रद्धा से आने वाले सभी प्राणी को इसका पूरण लाभ भी मिलेगा।

अपने गुरु से प्राप्त पूरण अष्ट योग विद्या, आयुर्वेद और आहार द्वारा उपचार का पूरण ज्ञान होने से श्री स्वामी देवीदयाल जी महाराज ने अपने जीवनकाल में लगभग 65 योग आश्रमों का निर्माण किया जिसमें आज भी हजारों रोगी एवं दुखी व्यक्ति लाभ ले रहे हैं।

  • महाराज जी के जीवन से जुड़ी अनेकों ऐसी दिव्य अलौकिक घटनाएँ हुईं जिससे बड़े बड़े डॉक्टर भी हैरान हो जाते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है।

  • मात्र आहार द्वार योग करने से ही हजारों को जीवनदान मिला।

  • उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी एवं श्री ज्ञानी जैल सिंह जी भी श्री महाराज जी के संपर्क में आए और खुले शब्दों से महाराज जी द्वारा की जा रही योग सेवा की प्रशंसा की।

  • ऐसे बहुत सारे रोगियों के प्रमाण मौजूद हैं जिससे यह पूरण रूप से सिद्ध होता है कि स्वामी देवीदयाल जी महाराज पूर्ण योग योगेश्वर के रूप में अवतरित हुए।

  • संपर्क में आए हुए बहुत से प्राणियों का ना सिर्फ रोग ही ठीक हुआ बल्कि सत्संग में रह कर और बार बार आश्रमों में दर्शन करके जीवन का भी कल्याण हो गया। आश्रम में आने वाले साधकों एवं भक्तों से मिलकर एवं जानकर बहुत कुछ लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

  • सन् 1998 में अपनी योग लीला पूरण कर श्री महाराज जी ने अपने नश्वर स्थूल शरीर से विदा ली पर उनके बनाए एवं बताए हुए मार्ग पर आज भी लगभग 65 आश्रम सुचारु रूप से कार्य कर रहे हैं और जैसे आज भी आश्रमों में आने वाले अनेकों रोगियों को एवं भक्त समाज को इसका लाभ मिल रहा है। यह दर्शाता है की श्री महाराज जी की मौजूदगी आज भी इन आश्रमों में महसूस की जा सकती है।

 

शायद इसी को कहते हैं : “चमत्कार को नमस्कार”

श्री 1108 योगेश्वर महाप्रभु रामलाल जी महाराज

(सन् 1888 — 1938)

महाशक्ति के अवतार योगेश्वर रामलाल महाप्रभु जी ने चिरगुप्त योग-विद्या के पुनरुद्घार व इस कलिकाल में योग जैसे महान, गोपनीय साधन प्रदान करने के लिए पंजाब के अमृतसर नगर में रामनवमी के पावन दिवस पर अवतार लिया।
महाप्रभु जी त्रिकालदर्शी ज्योतिष, वैद्य व योग विद्या के सम्पूर्ण ज्ञाता थे। उन्होंने मर्यादावश हिमालय में वर्षों समाधि कर अष्टांग योग को सिद्ध किया और योग के साधनों को जनसाधारण व गृहस्थियों के लिए सरल बनाया।
श्री महाप्रभु जी ने योग का दिव्य प्रकाश फैलाने हेतु अमृतसर, लाहौर, ऋषिकेश व हरिद्वार इत्यादि स्थानों पर अनेकों योग साधन आश्रमों की स्थापना की तथा शक्तिपात दीक्षा, जीवन तत्व (काया कल्प) के सरल साधनों द्वारा अनेकानेक साध्य असाध्य रोगों का निवारण किया।

सन् 1936 में उन्होंने योगेश्वर श्री मुलखराज जी महाराज को वर्षों की समाधि से उत्थान कर अष्टांग योग का स्वामी बनाया और योग संचार की आज्ञा देकर निज आसान आसीन किया।

श्री 1108 योगेश्वर मुलखराज जी महाराज

(सन् 1898 — 1960)

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योग योगेश्वर श्री मुलखराज जी महाराज का जन्म सन् 1898 में पंजाब के ज़िला गुरदासपुर में माघ संक्रांति के पावन दिवस पर हुआ। सन् 1921 में उन्हें पूर्व जन्म के पिता, सद्ग़ुरु व इष्ट श्री रामलाल महाप्रभु जी के पावन दर्शन हुए।

महाप्रभु जी ने उन्हें कृपा का पात्र जानकार आशीर्वाद दिया व 12 वर्षों तक समाधि की परम अवस्था तुर्या अतितुर्या में रखा। आप इस अवस्था में बंद आँखें 24 घंटे मस्त रहते हुए भी सांसारिक कार्य और गुरु सेवा में संलग्न रहे

महाप्रभु जी के मानव शरीर लीला रमण करने के बाद श्री मुलखराज जी महाराज ने योग का प्रचार विभिन्न प्रदेशों में फै लाया व कई योग आश्रमों की स्थापना की।

सहस्त्र नर नारी भक्त समाज आपकी शरण में आकर शारीरिक-मानसिक रोगों से मुक्त होकर आपसे दीक्षित होकर ध्यान-समाधि व जीवन-मुक्त अवस्था को प्राप्त हुए।

श्री 1108 योगेश्वर स्वामी देवीदयाल जी महाराज

(सन् 1920 — 1998)

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परम पूज्य सदगुरूदेव स्वामी देवी दयाल जी महाराज का जन्म सन् 1920 में लाहौर प्रांत के ज़िला खानेवाल में हुआ।

स्वामी जी को सन् 1941 से योगेश्वर मुलखराज जी महाराज का सान्निध्य प्राप्त हुआ।

 

आपकी सेवा, श्रद्धा व भक्ति भाव से प्रसन्न होकर योगेश्वर मुलखराज जी महाराज ने आपको अपनी सम्पूर्ण योग विद्या व महाशक्तियों का अधिकारी बनाते हुए आपको भारतवर्ष में योग के प्रचार प्रसार की आज्ञा दी।

स्वामी देवी दयाल जी ने भारतवर्ष में सैकड़ों योग शिविर लगाए व 60 से अधिक योग आश्रमों की स्थापना की।

 

इन योग आश्रमों में लाखों रोगियों को शारीरिक-मानसिक रोगों से मुक्ति प्राप्त हो रही है व आत्मिक प्रगति का मार्गदर्शन हो रहा है।

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